emotional independence

Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

दिल की डोर से आज़ाद होने का सफर
साधक, जब हम किसी के प्रति भावनात्मक रूप से अत्यधिक निर्भर हो जाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हमारी खुशियाँ, हमारी शांति, और हमारा अस्तित्व उस व्यक्ति के हाथों में बंद हो गया हो। यह निर्भरता हमें भीतर से कमजोर कर देती है, हमारी स्वतंत्रता छीन लेती है। लेकिन याद रखिए, आप अकेले नहीं हैं। हर कोई इस जाल में फंस सकता है, और भगवद गीता हमें इस जाल से मुक्त होने का रास्ता दिखाती है।

अपने मन के स्वामी बनो: दूसरों के मूड से प्रभावित न होने का राज़
साधक,
जब हम दूसरों के मूड या कर्मों से प्रभावित होते हैं, तो हमारा मन बेचैन हो जाता है, और हम अपनी शांति खो देते हैं। यह स्वाभाविक है कि हम दूसरों से जुड़ते हैं, परंतु अपनी आंतरिक शांति को बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है। आइए गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझें और अपने मन को स्थिर बनाएं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”

— भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 47