रिश्तों के आध्यात्मिक और कर्मसंबंधी पहलू समझना — एक आत्मीय संवाद
साधक, जब हम अपने जीवन के रिश्तों की गहराई में उतरते हैं, तो अक्सर यह भ्रम होता है कि कौन सा रिश्ता हमारे कर्मों का फल है, और कौन सा आध्यात्मिक बंधन है जो हमें मुक्त करने की ओर ले जाता है। इस उलझन में तुम अकेले नहीं हो। यह प्रश्न हर उस मन का है जो प्रेम, लगाव और त्याग के बीच संतुलन खोजता है।
🕉️ शाश्वत श्लोक
श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
— भगवद्गीता 2.47