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चलो यहाँ से शुरू करें: विषाक्त यादों को छोड़ने का पहला कदम
साधक, मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन में वह याद बार-बार दस्तक देती है, जैसे कोई अनचाहा मेहमान जो जाने का नाम नहीं लेता। यह दर्द और बेचैनी तुम्हें थका देती है, पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर कोई अपने जीवन में ऐसी यादों से जूझता है। आज हम भगवद गीता की दिव्य शिक्षाओं के माध्यम से उस बोझ को हल्का करने का मार्ग खोजेंगे।

यादों के सागर में डूबे मन को शांति की ओर ले जाना
साधक,
जब कोई यादें हमारे दिल और दिमाग पर इतनी छाई होती हैं कि वे हमें आगे बढ़ने नहीं देतीं, तब यह समझना बहुत जरूरी होता है कि हम अकेले नहीं हैं। हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी ऐसी यादों का सैलाब आता है जो उसे भीतर तक झकझोर देता है। लेकिन यादों से चिपके रहना, जैसे कोई बोझ बन जाता है, हमें वर्तमान की खुशियों और भविष्य की संभावनाओं से दूर कर देता है। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझें और उससे मुक्त होने का मार्ग खोजें।