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डर मत, तुम अकेले नहीं हो — दूसरों के फैसलों से मुक्त होने का रास्ता
प्रिय मित्र, यह भय कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे या उनके फैसले हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करेंगे, एक सामान्य मानवीय भावना है। परंतु यह डर तुम्हारे अंदर की शक्ति को कमजोर कर देता है। भगवद गीता हमें सिखाती है कि हम अपने कर्मों का स्वामी हैं, दूसरों के फैसलों के गुलाम नहीं। चलो, इस भय को समझें और उससे पार पाने का मार्ग खोजें।

समाज की चिंता में अकेला नहीं हो तुम
साधक, जब हम सामाजिक चिंता की बात करते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि हम अकेले नहीं हैं। हमारे भीतर और हमारे आस-पास के समाज में जो भी अशांति, असमानता या अन्याय है, वह तुम्हारी चिंता का विषय है। भगवद गीता में भी इस विषय पर गहरा प्रकाश डाला गया है, जो तुम्हारे मन के संदेहों को दूर कर सकता है।