समाज की चिंता में अकेला नहीं हो तुम
साधक, जब हम सामाजिक चिंता की बात करते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि हम अकेले नहीं हैं। हमारे भीतर और हमारे आस-पास के समाज में जो भी अशांति, असमानता या अन्याय है, वह तुम्हारी चिंता का विषय है। भगवद गीता में भी इस विषय पर गहरा प्रकाश डाला गया है, जो तुम्हारे मन के संदेहों को दूर कर सकता है।