पहचान की भूल से मुक्त होने का संदेश: तुम वह नहीं जो दिखता है
साधक,
जब हम अपने आप को केवल बाहरी भूमिकाओं, समाज की अपेक्षाओं या अपने अहंकार की सीमाओं में बाँध लेते हैं, तब असली आत्मा की आवाज़ दब जाती है। यह भ्रम हमें भीतर से बेचैन करता है। लेकिन भगवद गीता हमें सिखाती है कि हमारी असली पहचान शरीर, मन या भूमिका से परे है। आइए, इस गूढ़ सत्य को समझें और उस भ्रम से मुक्त हों।