शरीर: आपका प्रिय सेवक, आपका सच्चा मित्र
साधक, जब हम अपने शरीर को केवल एक वस्तु या बोझ समझते हैं, तो वह हमें दर्द और पीड़ा का कारण लगता है। लेकिन श्रीकृष्ण हमें बताते हैं कि हमारा शरीर हमारा सेवक है, जो हमारी आत्मा की सेवा करता है। इसे प्यार और सम्मान से संभालना चाहिए, न कि अत्याचार और उपेक्षा से। आओ, गीता के दिव्य शब्दों में इस रहस्य को समझें।