अपनी आंतरिक दिव्यता को अपनाने का सफर: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब तुम अपनी आंतरिक दिव्यता को खोजने और अपनाने की बात करते हो, तो यह एक बहुत ही पवित्र और गहन यात्रा है। यह सफर कभी आसान नहीं होता, क्योंकि हमारी बाहरी दुनिया की उलझनों और भीतरी संदेहों के बीच अपनी आत्मा की आवाज़ सुनना चुनौतीपूर्ण होता है। पर याद रखो, हर मानव के भीतर एक दिव्य चिंगारी है, जो कभी बुझती नहीं। आइए, गीता के प्रकाश में इस दिव्यता को समझें और अपनाने का मार्ग खोजें।