जब आलोचना की आँधियों में भी डगमगाए बिना खड़े रहें
साधक, जब तुम अपने अनुशासन के पथ पर चलते हो और लोग तुम्हारी मेहनत, नियमों और प्रतिबद्धता की निंदा करते हैं, तब यह स्वाभाविक है कि मन में संशय और पीड़ा उत्पन्न हो। पर याद रखो, तुम्हारा आंतरिक बल ही तुम्हें उस तूफान से पार ले जाएगा। तुम अकेले नहीं हो, हर महान आत्मा ने इसी परीक्षा से गुजरकर अपनी शक्ति पाई है।