जीवन के अंतिम अध्याय को अपनाना: जब समय सीमित हो
साधक, जब जीवन की राह में हम किसी टर्मिनल बीमारी से जूझते हैं — चाहे वह हमारे परिवार में हो या स्वयं में — तो मन भारी, भयभीत और असहाय हो जाता है। यह स्वाभाविक है। पर याद रखिए, आप अकेले नहीं हैं। इस कठिन घड़ी में भगवद गीता की अमृत वाणी आपके लिए एक प्रकाशस्तंभ बन सकती है।