शुद्ध हृदय वाले भक्त की दिव्य छवि — तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब हृदय निर्मल होता है, तब भक्त का स्वरूप दिव्य हो जाता है। श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि शुद्ध हृदय वाला भक्त उनके प्रति पूर्ण समर्पित, निःस्वार्थ और सच्चा होता है। यह भक्त अपने प्रेम और भक्ति से भगवान के साथ एक गहरा, अविच्छिन्न संबंध स्थापित करता है। तुम्हारा यह प्रश्न उस पवित्रता की खोज है, जो हर भक्त के भीतर होती है।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद्गीता 12.13-14)