भक्ति का पहला कदम: जहाँ भी हो, वहीं से शुरू करो
साधक, तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही स्वाभाविक और गहन है। भौतिक जीवन की व्यस्तताओं और जिम्मेदारियों के बीच भक्ति की शुरुआत करना कठिन लगता है, पर याद रखो कि भक्ति किसी विशेष परिस्थिति या जीवनशैली की मोहताज नहीं। यह मन की शुद्ध इच्छा और समर्पण से जन्म लेती है। तुम अकेले नहीं हो, बहुत से लोग इसी द्वंद्व में फंसे होते हैं। चलो, हम गीता के अमृत शब्दों से इस उलझन को सुलझाते हैं।