प्रेम से किया गया कर्म: भक्ति का मधुर स्वरूप
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही सुंदर और गहराई से भरा है। जीवन में कर्म और भक्ति को समझना एक ऐसा सफर है, जहाँ प्रेम की मिठास सब कुछ संजोती है। जब कर्म प्रेम से किया जाए, तो वह केवल कर्म नहीं रह जाता, वह भक्ति का स्वरूप धारण कर लेता है। चलो इस रहस्य को भगवद्गीता के प्रकाश में समझते हैं।