🌿 "परिणामों से मुक्त हो, मन को शांति दे"
साधक, जब हम अपने कर्मों के फल की चिंता में उलझ जाते हैं, तो मन अशांत होता है और जीवन का आनंद छिन जाता है। यह स्वाभाविक है कि हम चाहते हैं कि हमारे प्रयास सफल हों, लेकिन अगर हम फल के बंधन में फंस जाएं, तो यह हमें मानसिक पीड़ा देता है। जानो, तुम अकेले नहीं हो, हर मनुष्य इसी द्वंद्व से गुज़रता है। चलो, गीता के अमृत शब्दों से इस उलझन को सुलझाते हैं।