darkness

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अंधकार में भी दीपक जलता है — तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब जीवन के क्षण पूर्ण अंधकार से घिरे लगें, तब ऐसा महसूस होना स्वाभाविक है कि कहीं कोई प्रकाश नहीं बचा। परंतु याद रखो, अंधकार जितना गहरा हो, प्रकाश उतना ही नज़दीक होता है। यह समय है जब अपने भीतर की चिंगारी को पहचानो और उसे पोषित करो। तुम अकेले नहीं हो, यह अंधकार भी एक गुजरता हुआ मौसम है।

अंधकार के बीच निःस्वार्थ कर्म की ज्योति: तुम अकेले नहीं हो
प्रिय मित्र, जब जीवन के अंधकार घने होते हैं, तब मन की गहराइयों में निराशा और उदासी की छाया फैल जाती है। ऐसे समय में तुम्हारा यह प्रश्न — "अंधकार को पार करने में निःस्वार्थ कर्म की क्या भूमिका होती है?" — अत्यंत महत्वपूर्ण और सार्थक है। समझो, तुम अकेले नहीं हो, यह प्रश्न हर उस आत्मा का है जो अपने भीतर के अंधेरे से लड़ रही है। आइए, हम भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

अंधकार में भी दीपक जलाना संभव है
साधक, जब जीवन का आकाश घने बादलों से ढक जाता है, और मन के भीतर अंधेरा घना हो जाता है, तब आशा की एक किरण ढूंढ पाना कठिन लगता है। ऐसा समय हर किसी के जीवन में आता है, और यह जान लेना ही पहला कदम है कि तुम अकेले नहीं हो। आशा का दीपक भीतर ही जलाना पड़ता है, और वह दीपक है तुम्हारे हृदय की आत्मशक्ति।