शांति की ओर पहला कदम: भावनात्मक बहसों में स्वयं को स्थिर रखना
साधक, जब जीवन के सबसे करीब के रिश्तों में, जैसे विवाह और पालन-पोषण में, भावनात्मक बहसें होती हैं, तब हमारा मन अक्सर उग्र और अस्थिर हो जाता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि हमारे दिल जुड़े होते हैं। परन्तु, यही वह समय होता है जब हमें अपने भीतर की शांति खोजनी होती है। तुम अकेले नहीं हो, हर व्यक्ति को यह चुनौती आती है। चलो मिलकर गीता के अमृत वचनों से इस उलझन का समाधान खोजते हैं।