overthinking

Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

"चलो यहाँ से शुरू करें: चिंता के सागर में एक डुबकी"
साधक,
तुम्हारा मन “क्या होगा अगर” की अनगिनत लहरों में उलझा हुआ है। यह चिंता का चक्र कभी-कभी ऐसा होता है जैसे हम एक अंधेरे जंगल में खो गए हों, जहां हर कदम पर डर और अनिश्चितता होती है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब भविष्य की अनिश्चितता उसे घेर लेती है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को समझें और उसे सहजता से पार करें।

मन की उलझनों से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, जब मन विचारों के जाल में उलझता है, तब ऐसा लगता है कि हम खुद को खो बैठे हैं। अधिक सोच-विचार की इस भीड़ में मन घबराता है, थक जाता है, और अंततः हमें असमंजस में डाल देता है। परन्तु जान लो, तुम अकेले नहीं हो। श्रीमद्भगवद्गीता में ऐसे अनेक सूत्र हैं जो इस मन की हलचल को समझने और उससे पार पाने का रास्ता दिखाते हैं।