"चलो यहाँ से शुरू करें: चिंता के सागर में एक डुबकी"
साधक,
तुम्हारा मन “क्या होगा अगर” की अनगिनत लहरों में उलझा हुआ है। यह चिंता का चक्र कभी-कभी ऐसा होता है जैसे हम एक अंधेरे जंगल में खो गए हों, जहां हर कदम पर डर और अनिश्चितता होती है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब भविष्य की अनिश्चितता उसे घेर लेती है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को समझें और उसे सहजता से पार करें।