संदेह के सागर में डूबते मन को शांति की ओर ले चलें
साधक,
जब हम अपने ही मन पर विश्वास खो देते हैं, तो जीवन की राह धुंधली और अनिश्चित लगने लगती है। यह संदेह की आग भीतर जलती रहती है और हमें थकावट, उलझन और आत्म-संदेह में फंसा देती है। जान लो, तुम अकेले नहीं हो, हर मानव के मन में कभी न कभी ऐसा तूफान आता है। परंतु गीता की अमृत वाणी में वह मार्ग है, जो इस भ्रम और संदेह के बादल को छंटने में मदद करता है।