imperfection

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Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

चलो अपनी अपूर्णता को गले लगाएं: गीता का स्नेहिल संदेश
साधक,
तुम्हारे मन में जो पछतावा, अपराधबोध और अपने अतीत की गलतियों को लेकर असहजता है, उसे मैं समझता हूँ। यह भावनाएँ इंसान होने का हिस्सा हैं। परंतु, क्या तुम जानते हो कि भगवद गीता हमें अपने अंदर की अपूर्णता को स्वीकार करने और उससे मुक्त होने का रास्ता दिखाती है? आइए, इस दिव्य ग्रंथ की वाणी में छुपे सत्य को साथ मिलकर समझें।

अपूर्णता की स्वीकार्यता: खुद से और दूसरों से प्रेम का पहला कदम
साधक,
जब हम अपने और दूसरों के भीतर अपूर्णता देखते हैं, तो अक्सर मन में बेचैनी, असंतोष और कभी-कभी निराशा जन्म लेती है। यह अनुभव पूरी तरह मानवीय है। परंतु जानो, यही अपूर्णता हमें विकास की राह दिखाती है, हमें विनम्र बनाती है, और प्रेम की गहराई में ले जाती है। तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में। चलो, भगवद गीता के अमृत शब्दों के साथ इस सफर को समझते हैं।