डर को समझो, निर्णय को अपनाओ
साधक, जीवन में निर्णय लेना और अस्वीकृति का डर होना स्वाभाविक है। यह तुम्हारे मन की गहराइयों से उठने वाली वे भावनाएँ हैं जो तुम्हारी सुरक्षा और सफलता दोनों की चिंता करती हैं। परन्तु याद रखो, यह डर तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारा शिक्षक है। चलो मिलकर इस भय को समझें और उसे पार करें।
🕉️ शाश्वत श्लोक
संकल्प और भय पर गीता का प्रकाश
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
— भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 47