सम्मान और दोष की परिपाटी: नेतृत्व का सच्चा स्वरूप
साधक, जीवन में जब हम नेतृत्व की भूमिका निभाते हैं, तो सम्मान बाँटना और दोष सहना दोनों ही हमारे चरित्र की परीक्षा होते हैं। यह सरल नहीं, परन्तु गीता हमें इस राह पर गहरा और स्थिर मार्गदर्शन देती है। चलिए, इस दिव्य प्रकाश से हम अपने मन के भ्रम को दूर करें।