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दर्द के सागर में भी तैरना सीखो — शरीर और मन का संतुलन
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है। शरीर का दर्द, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, हमारी चेतना को अक्सर घेर लेता है। पर क्या दर्द ही हमारा पूरा अस्तित्व है? क्या हम केवल अपने शरीर की सीमाओं में बंधे हुए हैं? आइए, भगवद गीता के अमृत श्लोकों से इस उलझन को सुलझाते हैं।

अलगाव का अभ्यास और गहराई से परवाह — क्या यह विरोधाभासी है?
साधक, जीवन में जब हम अलगाव (वैराग्य) की ओर बढ़ते हैं, तो अक्सर मन में यह सवाल उठता है कि क्या दूसरों से गहरा प्रेम और परवाह करना गलत है? क्या अलगाव का मतलब है सब कुछ छोड़ देना, भावनाओं से कट जाना? आइए, इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।