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चलो यहाँ से शुरू करें: जब दिशा नहीं दिखती, तो कदम बढ़ाना ज़रूरी है
प्रिय मित्र, यह सवाल बहुत गहरा है और हर किसी के जीवन में कभी न कभी आता है। जब हम खुद से पूछते हैं, "मैं कौन हूँ? मैं क्या बनना चाहता हूँ?" और जवाब नहीं मिल पाता, तो यह उलझन और असमंजस का समय होता है। जान लीजिए, आप अकेले नहीं हैं। यह खोज का सफर है, जो आपके भीतर की आत्मा को जागृत करता है।

अपने भीतर की अनिश्चितता से दोस्ती करें
साधक, जब मन की दुनिया अस्थिर हो, जब पहचान और व्यक्तित्व की छाया हमें डगमगाए, तब यह समझना बहुत जरूरी है कि यह अस्थिरता तुम्हारे अस्तित्व का हिस्सा है, न कि अंत। तुम अकेले नहीं हो; हर व्यक्ति के मन में यह लहरें उठती हैं। भगवद गीता हमें इस भ्रम से उबरने और स्थिरता की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाती है।