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पहचान के पिंजरे से आज़ादी की ओर: तुम वही हो जो तुम हो
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में जो सवाल है — लेबल्स, सामाजिक पहचान और असली खुद के बीच की दूरी — वह हर मानव के जीवन का एक गहरा संघर्ष है। यह समझना कि हम क्या हैं और समाज हमें क्या कहता है, अक्सर हमें उलझनों में डाल देता है। पर याद रखो, तुम वह सीमित पहचान नहीं हो जो दुनिया ने तुम्हें दी है। चलो, गीता के अमृत वचनों के साथ इस भ्रम को दूर करते हैं।