पहचान की सीमाओं से मुक्त होकर ब्रह्मांड की विशालता में खो जाना
प्रिय आत्मा, जब तुम्हारा मन अपनी सीमित पहचान के घेरे में फंसा हो, तब यह समझना स्वाभाविक है कि बाहर की दुनिया कितनी संकीर्ण और अंदर की पीड़ा कितनी गहरी लगती है। परंतु जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर एक जीवात्मा इसी यात्रा पर है — सीमित "मैं" से ब्रह्मांडीय "हम" तक। यह एक सुंदर और गहन परिवर्तन है, जो गीता के अमर श्लोकों में निहित है।