अंधकार में भी उजाले का स्वागत करें
साधक, जब मन के भीतर गहरे दुख और अंधकार छा जाता है, तो उसे लड़ना या भागना स्वाभाविक लगता है। पर क्या कभी आपने सोचा है कि अपने दुख को स्वीकार करना, उसके साथ मिलकर चलना, उससे लड़ने से कहीं अधिक साहसिक और मुक्तिदायक होता है? आइए, गीता के अमर शब्दों में इस रहस्य को समझें।