मन के अंधकार में भी उजाला है
साधक, जब मन बार-बार दर्द की ओर लौटता है, तो यह तुम्हारे भीतर छुपे उस गहरे भाव का संकेत है जिसे समझने और सहलाने की आवश्यकता है। यह अकेलापन या कमजोरी नहीं, बल्कि तुम्हारे अस्तित्व की उस आवाज़ का प्रतिबिंब है जो ध्यान और प्रेम की बाट देख रही है। तुम अकेले नहीं हो, और यह यात्रा भी स्थायी नहीं। चलो मिलकर उस गीता के अमृत श्लोक के माध्यम से इस दर्द को समझते हैं और उसे पार करने का रास्ता खोजते हैं।