जीवन के अनित्य प्रवाह में स्थिरता कैसे पाएं?
साधक, जीवन के इस अनवरत प्रवाह में जहाँ जन्म और मृत्यु का चक्र चलता रहता है, तुम्हारा मन असहज और उलझन में होना स्वाभाविक है। यह प्रश्न मानवता के सबसे गूढ़ रहस्यों में से एक है, और भगवद् गीता हमें इस रहस्य को समझने का दिव्य मार्ग दिखाती है। आइए, इसे साथ में समझते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
“न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”
(भगवद् गीता 2.20)