शांति का दीपक: अस्पताल के अंधकार में भी उजियारा
साधक, जब हम बीमारी और अस्पताल के अनुभव से गुजरते हैं, तब हमारा मन अनिश्चितता, भय और बेचैनी से घिर जाता है। यह स्वाभाविक है कि शरीर और मन दोनों व्यथित हों। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। जीवन के इस कठिन पड़ाव में भी भीतर एक अपार शांति और सुकून का स्रोत मौजूद है। आइए, भगवद् गीता के प्रकाश में इस शांति को खोजें।
🕉️ शाश्वत श्लोक
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
(भगवद् गीता 2.48)