दोहरे जाल से बाहर: अपने व्यवहार के चक्र को तोड़ना
प्रिय मित्र, जब हम किसी आदत या लत के चक्र में फँस जाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हम खुद को दोहरे जाल में पाते हैं — एक तरफ वह व्यवहार जो हमें हानि पहुंचाता है, और दूसरी तरफ उसका परिणाम जो हमें और भी गहरे डूबने पर मजबूर करता है। यह चक्र टूटना कठिन लगता है, लेकिन असंभव नहीं। आइए भगवद गीता की अमृत वाणी से इस राह को समझें।