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खोने के डर में भी संतोष की ओर कदम
साधक, जब तुम्हारे मन में यह भाव उठता है कि तुम कुछ खो रहे हो, तो यह समझो कि यह एक सामान्य मानवीय अनुभव है। यह भावना तुम्हें अकेला नहीं करती, बल्कि यह तुम्हारे भीतर कुछ गहरे सवालों को जगाती है — "क्या मैं पर्याप्त हूँ?" "क्या मेरी खुशियाँ कहीं छूट तो नहीं रही?" आइए, इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।

तुम्हारा अनुभव समझता हूँ — चलो इस डर को मिलकर दूर करें
जब हम देखते हैं कि हमारे आस-पास के लोग जीवन का आनंद ले रहे हैं, तो मन में अक्सर यह डर उठता है कि कहीं हम कुछ महत्वपूर्ण तो नहीं खो रहे। यह FOMO यानी "कुछ मिस न कर जाने" का डर बहुत सामान्य है, पर इसे अपने मन का बोझ बनने मत देना। आइए भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझें और उससे मुक्त होने का मार्ग खोजें।