खोने के डर में भी संतोष की ओर कदम
साधक, जब तुम्हारे मन में यह भाव उठता है कि तुम कुछ खो रहे हो, तो यह समझो कि यह एक सामान्य मानवीय अनुभव है। यह भावना तुम्हें अकेला नहीं करती, बल्कि यह तुम्हारे भीतर कुछ गहरे सवालों को जगाती है — "क्या मैं पर्याप्त हूँ?" "क्या मेरी खुशियाँ कहीं छूट तो नहीं रही?" आइए, इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।