धीरे चलो, पर निरंतर बढ़ो — तुम्हारा सफर अनमोल है
साधक, जब तुम्हारा मन दूसरों की तेज़ रफ्तार देखकर थम सा जाता है, तो याद रखो कि हर आत्मा की यात्रा अपनी ही गति से होती है। ज़िंदगी की दौड़ में खुद को दूसरों से तुलना करना, जैसे अपनी छाया से लड़ना हो। यह भ्रम है, जो तुम्हारे अंदर बेचैनी और अधूरापन पैदा करता है। आइए, इस उलझन को भगवद गीता की अमूल्य शिक्षाओं से समझते हैं।