तुम अकेले नहीं हो — प्रेम की उस अनमोल छाया में
साधक, जब तुम्हारा मन यह सोचता है कि तुम कृष्ण के प्रेम के योग्य नहीं हो, या तुम्हारे अतीत के पाप और गलतियाँ तुम्हें उनके स्नेह से दूर करती हैं, तो जान लो कि यह एक आम अनुभव है। यह भाव तुम्हारे भीतर की संवेदनशीलता और आत्म-चेतना का परिचायक है। कृष्ण का प्रेम केवल योग्यताओं का फल नहीं, बल्कि अनंत दया और अनुग्रह का सागर है। चलो, गीता के शब्दों में इस जटिल भाव को समझते हैं।