जीवन के मोड़ पर: पहचान की नई सुबह की ओर
प्रिय मित्र, जब हम मध्यजीवन की गहराई में प्रवेश करते हैं, तो कई बार ऐसा लगता है कि हम अपनी पहचान खो बैठे हैं। यह भ्रम, यह उलझन, एक आम मानव अनुभव है। तुम अकेले नहीं हो। यह समय है स्वयं से मिलने का, अपने अस्तित्व की नई परतों को पहचानने का। चलो, भगवद गीता के प्रकाश में इस संकट को समझते हैं और उसे पार करने का मार्ग खोजते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
(अध्याय २, श्लोक ५८)