balance

Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

दिल की लहरों में स्थिरता की खोज
साधक, जब हम प्रेम की गहराइयों में उतरते हैं, तब हमारे मन में भावनाओं की लहरें उठती हैं — कभी खुशी, कभी उदासी, कभी आश्चर्य, कभी बेचैनी। यह स्वाभाविक है। प्रेम का मार्ग सरल नहीं होता, परंतु गीता की शिक्षाएं इस भावात्मक तूफान में भी हमें स्थिरता और शांति का दीपक दिखाती हैं। आइए, इस यात्रा में हम गीता के शब्दों से अपने मन को सहारा दें।

दिल और दिमाग का संगम: प्यार में भावनाओं और बुद्धिमत्ता का संतुलन
प्यारे शिष्य, प्यार एक ऐसा अनुभव है जो हमारे हृदय को उजागर करता है और मन को नई गहराइयों तक ले जाता है। परन्तु, जब भावनाएँ बहुत अधिक बहने लगें और बुद्धिमत्ता पीछे छूट जाए, तो रिश्ते अस्थिर हो सकते हैं। तुम्हारा यह प्रश्न बिलकुल स्वाभाविक है — कैसे प्यार की मधुरता में समझदारी का समावेश करें ताकि दोनों मिलकर जीवन को सुंदर बनाएं।

अलगावपूर्ण प्रेम: रिश्तों में स्वतंत्रता और स्नेह का संगम
साधक, रिश्तों में प्रेम और अलगाव—दोनों का संतुलन बनाए रखना एक गहन कला है। जब हम प्रेम करते हैं, तब भी हमें अपने और दूसरे के अस्तित्व की स्वतंत्रता का सम्मान करना पड़ता है। यह उलझन स्वाभाविक है, और तुम अकेले नहीं हो। चलो मिलकर इस रहस्य को समझते हैं।

अहंकार की आंधी में भी शांति बनाए रखना संभव है
साधक, जब अहंकार को चुनौती मिलती है, तो भीतर एक तूफान उठता है। यह स्वाभाविक है कि हमारा मन घबराए, क्रोध आए, और हम खुद को अस्थिर महसूस करें। परंतु याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। यह संघर्ष हर मानव के भीतर होता है। भगवद गीता में हमें ऐसे ही क्षणों के लिए अमूल्य मार्गदर्शन मिलता है, जो हमें संतुलन और शांति की ओर ले जाता है।

प्रशंसा के बीच भी आत्मसंतुलन बनाए रखना — एक गुरु की सलाह
साधक, जब हमें प्रशंसा मिलती है, तो मन में खुशी और गर्व के साथ-साथ अहंकार भी पलने लगता है। यह स्वाभाविक है। परंतु, जीवन की सच्ची शांति और स्थिरता तभी आती है जब हम प्रशंसा के सुख को भी अपने मन का गुलाम न बनने दें। आइए, भगवद गीता के अमृत वचनों से इस उलझन का समाधान खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

डर से दोस्ती: जब हम उसे अपना साथी बनाते हैं
साधक, डर हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह न तो पूरी तरह बुरा है और न ही हमेशा खतरनाक। डर हमें सचेत करता है, हमें सुरक्षित रखता है, लेकिन जब यह बढ़ जाए तो वह हमें जकड़ लेता है। आइए, गीता के प्रकाश में समझते हैं कि कैसे डर को अपनाएं बिना उसे अपने ऊपर हावी होने दें।