जब अहंकार की आंधी उठती है — तुम अकेले नहीं हो
साधक, यह भावना कि कभी-कभी हम दूसरों से श्रेष्ठ महसूस करते हैं, मानव मन की एक सामान्य प्रवृत्ति है। यह अहंकार की एक झलक है, जो कभी-कभी हमारे भीतर उठती है। यह जानना जरूरी है कि यह भावना तुम्हें कमजोर नहीं बनाती, बल्कि तुम्हें अपने मन के गहरे पहलुओं को समझने का अवसर देती है। चलो, गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 13, श्लोक 8-9
"अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽपि च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्॥"
हिंदी अनुवाद:
"अहिंसा (हिंसा न करना), समता (सबमें समानता), तुष्टि (संतोष), तप (आत्मसंयम), दान (दान करना), यश (सामाजिक सम्मान), ज्ञान और विज्ञान, आस्तिक्य (ईश्वर में विश्वास), ये सब ब्रह्मकर्म अर्थात ईश्वर की ओर ले जाने वाले कर्म हैं।"
सरल व्याख्या:
जब हम दूसरों से श्रेष्ठ महसूस करते हैं, तो हम अपने भीतर की समानता और अहिंसा को भूल जाते हैं। गीता हमें सिखाती है कि सच्ची श्रेष्ठता दूसरों के प्रति दया, संतोष और समानता में है।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- अहंकार की पहचान करो: श्रेष्ठता का भाव अहंकार की एक परत है, जो अस्थायी और भ्रमित करती है। इसे समझना पहला कदम है।
- सबमें ईश्वर का स्वरूप देखो: हर जीव में परमात्मा का अंश है, इसलिए श्रेष्ठता का भाव मिट जाता है।
- समानता का अभ्यास करो: दूसरों में अपने जैसे गुण और कमजोरियाँ देखो।
- संतोष और दया को अपनाओ: जब हम संतुष्ट और दयालु होते हैं, तो अहंकार अपने आप कम हो जाता है।
- ज्ञान से अहंकार पर विजय पाओ: गीता का ज्ञान अहंकार को समझने और उससे ऊपर उठने का मार्ग दिखाता है।
🌊 मन की हलचल
"मैं दूसरों से बेहतर क्यों महसूस करता हूँ? क्या यह मुझे ताकत देता है या अंदर से कमजोर बनाता है? क्या मैं अपने इस अहंकार को छोड़ पाऊंगा? क्या मेरे भीतर एक सच्चा आत्मा है जो श्रेष्ठता के बंधनों से मुक्त है?"
ऐसे सवाल उठना स्वाभाविक है। यह तुम्हारे आत्मा के जागरण की शुरुआत है।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे अर्जुन, जो मन में दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव जागता है, वह अपने वास्तविक स्वरूप से दूर है। श्रेष्ठता बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक गुणों में होती है — जैसे करुणा, धैर्य और आत्मज्ञान। जब तू इन्हें अपनाएगा, तब सच्ची श्रेष्ठता तुझे मिलेगी। अहंकार को छोड़कर, मैं तुझे शांति और संतोष की ओर ले चलूंगा।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक बगीचे में दो पेड़ थे। एक पेड़ अपने फल की मिठास पर घमंड करता था, जबकि दूसरा पेड़ अपने फल के स्वाद को दूसरों के साथ बांटता था। घमंडी पेड़ को एक दिन तूफान ने हिला दिया, लेकिन दयालु पेड़ ने अपनी जड़ों को मजबूत रखा और फल देते रहे। इसी तरह, जब हम दूसरों से श्रेष्ठ महसूस कर घमंड करते हैं, तो जीवन के तूफानों में हम कमजोर पड़ जाते हैं।
✨ आज का एक कदम
आज के दिन, जब भी तुम्हारे मन में दूसरों से श्रेष्ठता का भाव आए, एक गहरी सांस लो और सोचो — "मैं सबमें ईश्वर का अंश देखता हूँ।" इस अभ्यास से अहंकार धीरे-धीरे कम होगा।
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मैं दूसरों की अच्छाइयों को स्वीकार कर पाता हूँ?
- क्या मेरा श्रेष्ठता का भाव मुझे अकेला करता है या जोड़ता है?
अहंकार के बादल छंटेंगे, सूरज फिर चमकेगा
साधक, अहंकार केवल एक बादल है जो तुम्हारे मन के आसमान को ढक लेता है। जब तुम ज्ञान और दया की रोशनी को अपनाओगे, तो यह बादल छंट जाएगा और तुम्हारा वास्तविक आत्मा उजागर होगा। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; हर मनुष्य इस यात्रा में है। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शांति और प्रेम के साथ।