bhakti

Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

इच्छा से भक्ति की ओर: प्रेम की सहज यात्रा
साधक,
तुम्हारे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है — जब इच्छाओं का संसार इतना आकर्षक और भ्रमित करने वाला हो, तो भक्ति की सरल और शुद्ध राह कैसे पकड़ी जाए? चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। यह यात्रा हर साधक के लिए चुनौतीपूर्ण होती है, पर गीता की अमृतवाणी तुम्हारे पथप्रदर्शक बन सकती है।

भक्ति की गहराई: स्थिर और अडिग प्रेम की ओर
साधक,
जब मन भक्ति के मार्ग पर चलता है, तब अनेक बार वह डगमगाता है। उत्साह कभी बढ़ता है, कभी कम होता है। यह स्वाभाविक है। परंतु क्या वह भक्ति है जो तूफानों में भी डगमगाए नहीं? क्या वह प्रेम है जो हर परिस्थिति में अडिग रहे? आइए, हम भगवद् गीता के अमृत शब्दों से इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः॥"

(भगवद् गीता, अध्याय 12, श्लोक 8)

विनम्रता: भक्ति का वह मधुर आधार जिससे प्रेम खिलता है
प्रिय शिष्य,
जब हम भक्ति की राह पर चलना चाहते हैं, तब विनम्रता वह दीपक है जो हमारे हृदय को प्रकाश से भर देता है। बिना विनम्रता के भक्ति अधूरी है, जैसे बिना मिट्टी के दीपक। चलो, इस दिव्य गुण की गहराई को समझें, जो हमें कृष्ण के करीब ले जाती है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद् गीता 12.13-14)

भय के बादल के बीच भक्ति की उजली किरण
साधक, जब मन भय और चिंता के जाल में फंस जाता है, तब लगता है जैसे आसमान पर काले बादल छा गए हों। पर क्या भक्ति, जो हमारे हृदय की सबसे कोमल धुन है, उस भय को हमेशा के लिए मिटा सकती है? आइए, भगवद गीता के अमूल्य शब्दों में इसका उत्तर खोजें।