Anger, Ego & Jealousy

Mind Emotions & Self Mastery

How can I control my negative thoughts as per the Gita?


Discover Gita's timeless wisdom for inner peace and emotional balance. Find clarity amidst life's chaos.

Life Purpose, Work & Wisdom

What does the Bhagavad Gita say about finding my true calling?


Uncover ancient principles for meaningful work and a life driven by purpose. Navigate your path with spiritual insight.

Relationships & Connection

How can I improve my relationships with others using Gita's teachings?

Build harmonious connections rooted in spiritual understanding. Transform your interactions with love and compassion

Devotion & Spritual Practice

What is the best way to start a daily spiritual practice according to the Gita?

Deepen your connection with the Divine through authentic practices. Cultivate a heart filled with devotion and inner joy.

Karma Cycles & Life Challenges

How can I understand and overcome life's challenges through the law of Karma?

Navigate life's ups and downs with a deeper understanding of Karma. Find strength and resilience in every experience.

अहंकार के जाल से मुक्त होने का मार्ग: चलो शांति की ओर कदम बढ़ाएं
साधक, अहंकार की जंजीरों में फंसे मनुष्य का जीवन अक्सर संघर्ष और पीड़ा से भर जाता है। यह अहंकार ही है जो हमें दूसरों से अलग, श्रेष्ठ या कभी-कभी हीन महसूस कराता है। लेकिन भगवद गीता हमें बताती है कि इस अहंकार के चक्र को कैसे तोड़ा जाए और वास्तविक शांति और आत्म-ज्ञान की ओर बढ़ा जाए।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः |
मम बुद्धिर्योगमेतदेतज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ||

(भगवद गीता, अध्याय 16, श्लोक 4)

ईर्ष्या के बादल छंटेंगे — चलो शांति की ओर कदम बढ़ाएं
प्रिय शिष्य, यह सच है कि जब हम अपने आसपास के लोगों की सफलता देखते हैं, तो कभी-कभी मन में ईर्ष्या का भाव उठना स्वाभाविक है। यह भाव हमें कमजोर या दोषी नहीं बनाता, बल्कि यह हमारी मानवीय संवेदनाओं का हिस्सा है। सबसे पहले, अपने आप को यह समझने का अवसर दें कि यह भावना आती है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम उससे पराजित हों। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

विनम्रता: आत्मा का सच्चा आभूषण
साधक, जब क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या जैसे भाव मन को घेर लेते हैं, तब विनम्रता एक ऐसा प्रकाश है जो अंधकार को दूर करता है। तुम अकेले नहीं हो; हर मानव मन कभी न कभी इन भावों से जूझता है। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में विनम्रता की गहराई को समझें और उसे अपने जीवन में उतारें।

अहं के आईने में: प्रशंसा-आलोचना का सच
साधक,
तुम्हारे मन में प्रशंसा और आलोचना के बीच झूलते अहं का प्रश्न बहुत गूढ़ है। यह झूलना स्वाभाविक है, क्योंकि मन की गहराइयों में हमारा अहं हमारे अस्तित्व की रक्षा करता है। परंतु, जब यह अहं प्रशंसा से फूलता है या आलोचना से सिकुड़ता है, तब मन अशांत हो जाता है। आइए, गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझें और अपने अहं को स्थिर करें।

जब अहंकार की आंधी उठती है — तुम अकेले नहीं हो
साधक, यह भावना कि कभी-कभी हम दूसरों से श्रेष्ठ महसूस करते हैं, मानव मन की एक सामान्य प्रवृत्ति है। यह अहंकार की एक झलक है, जो कभी-कभी हमारे भीतर उठती है। यह जानना जरूरी है कि यह भावना तुम्हें कमजोर नहीं बनाती, बल्कि तुम्हें अपने मन के गहरे पहलुओं को समझने का अवसर देती है। चलो, गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाते हैं।

अहंकार और स्व-सम्मान: दो अलग राहें, समझ की जरूरत
साधक, जब हम अपने भीतर की आवाज़ सुनते हैं, तो कई बार स्व-सम्मान और अहंकार के बीच की धुंधली रेखा हमें भ्रमित कर देती है। यह भ्रम हमारी मानसिक शांति और संबंधों को प्रभावित कर सकता है। चलिए, गीता के प्रकाश में इस अंतर को समझते हैं ताकि आपका मन स्पष्ट हो और आप सच्चे सम्मान के साथ जीवन की राह चल सकें।

क्रोध का सच: जब आग भी प्रकाश बन जाए
साधक,
तुम्हारे मन में क्रोध को लेकर जो सवाल है, वह बहुत गूढ़ है। क्रोध एक ऐसी भावना है जो हमारे अंदर आग की तरह जलती है, कभी-कभी हमें जलाती है, कभी दूसरों को। पर क्या यह आग हमेशा हानिकारक होती है? भगवद गीता हमें इस आग को समझने और सही दिशा देने का ज्ञान देती है। चलो, इस ज्वलंत विषय पर गीता के प्रकाश में विचार करें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63
"ध्यानावस्थितात्मना नाशोऽपि सम्यग्विचारतः।
ध्यानावस्थितात्मना नाशोऽपि सम्यग्विचारतः॥"

जब शब्द बिखर जाते हैं: गुस्से के पीछे छुपा मन
साधक, जब तुम्हारी बातों को लोग न सुनें, तो मन में जो गुस्सा उठता है, वह तुम्हारे भीतर की एक गहरी पीड़ा और असहायता का प्रतिबिंब है। यह स्वाभाविक है कि जब हम समझे नहीं जाते, तो हमारे अहंकार और भावनाएँ चोटिल होती हैं। परंतु यह जानना आवश्यक है कि गुस्सा केवल एक संकेत है — हमारे भीतर की बेचैनी का, हमारी अपेक्षाओं का, और हमारी आत्मा की आवाज़ का।

अहंकार: अलगाव की दीवार या समझ का सेतु?
प्रिय शिष्य, तुम्हारे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जब हम अपने अंदर के अहंकार को देखते हैं, तो कभी-कभी वह हमें दूसरों से दूर कर देता है, एक दीवार बन जाता है। पर क्या यह सचमुच अलगाव ही है, या एक संकेत है कि हमें अपने आप को समझने की जरूरत है? चलो, मिलकर इस रहस्य को समझते हैं।

दिल के बंधनों में ईर्ष्या से मुक्ति का रास्ता
साधक,
जब हम अपने निकटतम संबंधों में ईर्ष्या की भावना को महसूस करते हैं, तो यह हमारे मन को भीतर से बेचैन कर देता है। यह भावना न केवल हमारे मन को दुखी करती है, बल्कि हमारे रिश्तों में दूरी भी पैदा करती है। परंतु जान लो, तुम अकेले नहीं हो। यह मानवीय स्वभाव का एक हिस्सा है, जिसे समझकर और भगवद गीता के अमूल्य उपदेशों से सीख लेकर हम इससे मुक्त हो सकते हैं।