अहंकार के अंधकार से कर्मयोग की ज्योति की ओर
साधक, जब अहंकार और गर्व के जंजीरों में बंधा मन बेचैन होता है, तब कर्मयोग एक प्रकाशस्तंभ की तरह मार्ग दिखाता है। तुम्हारी यह उलझन बिल्कुल स्वाभाविक है, क्योंकि अहंकार हमारे स्वभाव का वह पक्ष है जो हमें अपने अस्तित्व का भ्रम दिलाता है। परन्तु गीता की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि कर्मयोग के द्वारा हम इस भ्रम को कैसे दूर कर सकते हैं। चलो, इस पथ पर एक साथ चलें।