भावनाओं के जाल में फंसा नहीं, बल्कि सीखता हुआ यात्री
साधक, जब हम बार-बार एक ही भावनात्मक गलती दोहराते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम कमजोर हैं या असफल हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा मन पुराने आदतों और अनुभवों के बंदिशों में बँधा होता है। यह एक संकेत है कि हमें अपने भीतर गहराई से देखना होगा, समझना होगा कि हमारी भावनाएँ क्यों हमें बार-बार उसी गलती की ओर खींचती हैं। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो, हर कोई इस जटिल मनोवैज्ञानिक यात्रा से गुजरता है।