भय नहीं, प्रेम से जुड़ो — भक्ति का सच्चा सार
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है। भय और प्रेम दोनों ही भाव मन में हो सकते हैं, लेकिन जब हम पूजा और भक्ति की बात करते हैं, तो उनका आधार पूरी तरह बदल जाता है। भय आधारित पूजा में मन असुरक्षा और डर से जुड़ा होता है, जबकि प्रेम आधारित भक्ति में आत्मा पूर्ण समर्पण और आनंद से खिल उठती है। चलो, गीता के प्रकाश में इस अंतर को समझते हैं।