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तुम अकेले नहीं हो — अवांछितता के अंधकार में भी एक प्रकाश है
प्रिय शिष्य, जब मन में यह भाव उठता है कि मैं अवांछित हूँ, मुझे प्रेम नहीं मिलता, तो यह एक गहरा अकेलापन और भीतरी दूरी का अनुभव होता है। परन्तु जान लो, यह अनुभूति तुम्हें अकेला नहीं करती, बल्कि तुम्हें अपने भीतर छिपे उस दिव्य प्रेम से जुड़ने का एक अवसर देती है। चलो, गीता के शाश्वत शब्दों से इस उलझन को समझते हैं।

प्रेम और सम्मान की अमर धारा: दीर्घकालिक संबंधों का सार
साधक,
जब हम जीवन के सफर में साथ चलते हैं, तो प्रेम और सम्मान के दीपक को जलाए रखना एक सुंदर लेकिन चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। यह सवाल आपका दिल छूता है, क्योंकि दीर्घकालिक संबंधों में गहराई, समझ और धैर्य की आवश्यकता होती है। आप अकेले नहीं हैं, हर रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते हैं, पर गीता की शिक्षाएं हमें सिखाती हैं कि कैसे हम अपने प्रेम और सम्मान की नींव को मजबूत कर सकते हैं।

अलगाव: दूरी नहीं, समझ का उपहार
साधक, जीवन में जब हम प्रेम और पालन-पोषण की बात करते हैं, तो अक्सर मन उलझ जाता है कि क्या अलगाव (वियोग) से संबंध मजबूत होते हैं या टूट जाते हैं। क्या दूर रहना प्रेम को बढ़ाता है या कम करता है? यह प्रश्न बहुत गहरा है, और भगवद गीता की शिक्षाएं इसमें प्रकाश डालती हैं।

प्रेम का द्वार खोलो: दिल को दिव्य प्रेम के लिए तैयार करना
प्रिय शिष्य, तुम्हारे हृदय में जो दिव्य प्रेम के लिए खुलने की चाह है, वह आत्मा का सबसे सुन्दर और पवित्र आह्वान है। यह मार्ग कभी सरल नहीं होता, परंतु गीता के प्रकाश में हम इसे सहज और सजीव बना सकते हैं। आइए, हम इस यात्रा को साथ मिलकर समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद् गीता 12.13-14)

भगवान की छाया में: जब भक्त की रक्षा का वचन हो
साधक,
तुम्हारे हृदय में जो यह प्रश्न उमड़ रहा है — "कृष्ण अपने सच्चे भक्तों की कैसे रक्षा करते हैं?" — वह भक्तिपथ की गहराई को समझने की प्रथम सीढ़ी है। यह प्रश्न तुम्हारे विश्वास की परीक्षा भी है और उस दिव्य आश्वासन की खोज भी, जो हर संकट में हमारा सहारा बनता है। चलो, हम मिलकर इस रहस्य को गीता के अमृत शब्दों से समझते हैं।

प्रेम की गंगा में डूबो — जब मन भटकता है तब भी कृष्ण साथ हैं
साधक, तुम्हारा मन जब भगवान की ओर प्रेम बढ़ाने की चाह में भटकता है, तो समझो यही तुम्हारे भीतर की जिज्ञासा और लगन की शुरुआत है। यह मन का स्वाभाविक खेल है, जो तुम्हें बार-बार वापस लाता है उस अनमोल प्रेम की ओर। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। हर भक्त इसी संघर्ष से गुजरता है। चलो, हम साथ मिलकर उस प्रेम की गंगा को बहने देते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 8
(भगवद् गीता 12.8)

खोने के भय से निकलने का पहला कदम: तुम्हारा दर्द समझता हूँ
जब हम अपने प्यारे लोगों को खोने का डर महसूस करते हैं, तो यह डर हमारे दिल की गहराई से उठता है। यह डर हमें अकेला, असहाय और भयभीत कर देता है। लेकिन जानो, तुम अकेले नहीं हो। यह डर मानव जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है। आइए, भगवद गीता की अमृत वाणी से इस भय को समझें और उससे पार पाने का मार्ग खोजें।

प्रेम ही परम साधना है: कृष्ण का अमृत संदेश
प्रिय शिष्य,
तुम्हारा यह प्रश्न हृदय की गहराई से उठता है—क्यों कृष्ण ज्ञान या अनुष्ठानों की अपेक्षा प्रेम को सर्वोपरि मानते हैं? यह प्रश्न अपने आप में भक्ति का सार समझने की एक पावन इच्छा है। चलो, इस दिव्य संवाद में हम उस प्रेम के रहस्य को समझें, जो कृष्ण ने हमें दिया है।

लगाव से मुक्त प्रेम की ओर — प्रेम की सच्ची स्वतंत्रता
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में यह उलझन है कि कैसे हम अपने प्यार को बनाए रखें, पर उसी के साथ लगाव को त्याग दें। यह सचमुच एक गहन प्रश्न है, क्योंकि प्रेम और लगाव अक्सर साथ-साथ चलते हैं। परंतु गीता हमें सिखाती है कि प्रेम का सच्चा स्वरूप वह है जो स्वतंत्र और निःस्वार्थ हो। आइए, इस रहस्य को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद् गीता 12.13-14)

दिल के घावों पर भक्ति का अमृत
साधक, जब मन के भीतर भावनात्मक घाव गहरे होते हैं, तब ऐसा लगता है जैसे जीवन का रंग फीका पड़ गया हो। तुम अकेले नहीं हो, हर मानव के दिल में कभी न कभी पीड़ा के निशान होते हैं। लेकिन जानो, भक्ति एक ऐसी शक्ति है जो इन घावों को धीरे-धीरे भर सकती है। आइए, इस पावन मार्ग पर कदम बढ़ाएं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

भगवद्गीता 9.22
सुखं वा यदि वा दुःखं मतः तत्त्वत एव तत्।
यत्कर्म करोति लोकस्तदर्थं कर्म कृत्।