अपराधबोध की बेड़ियों से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, जीवन की राह में जब हम अपने किए पर पछताते हैं, तो अपराधबोध की भावना हमें भीतर से जकड़ लेती है। यह बोझ हमारे मन को हल्का नहीं होने देता, बल्कि हमारे विकास में बाधा बन जाता है। परंतु भगवद्गीता की अमृतवाणी हमें सिखाती है कि कैसे हम इस अपराधबोध से ऊपर उठकर अपने आप को क्षमा कर, पुनः नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ सकते हैं। तुम अकेले नहीं हो, हर मानव इस संघर्ष से गुजरता है। चलो, गीता के प्रकाश में इस अंधकार को दूर करते हैं।