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चाह की आग में बेचैनी: जब अधिक की लालसा मन को घेर ले
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है। अधिक पाने की इच्छा जो कभी पूरी न हो, वह मन को बेचैन करती है, तनाव देती है और असंतोष की आग जलाती है। आइए गीता के प्रकाश में इस बेचैनी को समझें और उससे मुक्त होने का मार्ग खोजें।

मन की बेचैनी में समझदारी की मशाल जलाएं
साधक, जब मन बेचैन होता है, तो सोचने-समझने की शक्ति धुंधली पड़ जाती है। ऐसे समय में निर्णय लेना कठिन लगता है, और हम अक्सर अपने आप को खोया हुआ महसूस करते हैं। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता हमें ऐसे समय में भी स्थिरता और विवेक के साथ आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

संकल्प और मनोबल की शक्ति पर गीता का संदेश

इच्छाओं की बेचैनी से शांति की ओर पहला कदम
साधक, जब तुम्हारी मनोकामनाएँ पूरी नहीं होतीं, तो बेचैनी और असंतोष का भाव स्वाभाविक है। यह मानव स्वभाव का हिस्सा है। लेकिन याद रखो, तुम्हारा अस्तित्व इच्छाओं से कहीं अधिक है। चलो, इस बेचैनी को समझते हुए, गीता के अमर शब्दों से तुम्हारे मन को सुकून देते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||

(भगवद् गीता 2.48)

मन की अशांति में भी शांति का दीपक जलाना संभव है
साधक, जब मन अशांत और अस्थिर होता है, तब ऐसा लगता है जैसे समुंदर की लहरें हमारे भीतर उफान मार रही हों। पर याद रखो, उस उफान के बीच भी एक शांत और स्थिर केंद्र होता है, जिसे हम अपने भीतर खोज सकते हैं। तुम अकेले नहीं हो इस संघर्ष में, हर मानव के मन में कभी न कभी ऐसी हलचल होती है। चलो, श्रीकृष्ण के दिव्य उपदेशों से इस भ्रम को दूर करते हैं।