courage

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Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

शर्मिंदगी के साए से निकलकर आत्मविश्वास की ओर
साधक, जब अतीत के काले बादल हमारे मन पर छा जाते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि हम शर्मिंदगी और अपराधबोध के बोझ तले दब जाते हैं। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मानव के जीवन में कुछ न कुछ गलतियाँ होती हैं, पर गीता हमें सिखाती है कि अतीत के बोझ में फंसकर वर्तमान का प्रकाश कैसे खोना नहीं चाहिए। चलो, इस सफर में मैं तुम्हारे साथ हूँ।

माफ़ करने की ताकत: कमजोरी नहीं, साहस है
प्रिय शिष्य, जब हम माफ़ करने की बात करते हैं, तो अक्सर लगता है कि हम कमजोर हो रहे हैं, या हम पर अन्याय हो रहा है। परंतु माफ़ करना कमजोरी नहीं, बल्कि अपने भीतर की सबसे बड़ी शक्ति को जगाने जैसा है। चलिए, इस राह पर भगवद गीता की अमृत वाणी से कदम बढ़ाते हैं।

मृत्यु का भय: क्या सच में डरना चाहिए?
साधक, जीवन के इस अनिवार्य सत्य — मृत्यु — से डरना स्वाभाविक है। यह भय हमारे अस्तित्व की गहराई से जुड़ा है, क्योंकि हम अपने प्रियजनों, अपने कर्मों और अपने अस्तित्व की चिंता करते हैं। परंतु भगवद गीता हमें यह भी सिखाती है कि मृत्यु का भय केवल अज्ञानता से उत्पन्न होता है। जब हम जीवन के चक्र और आत्मा के अमरत्व को समझते हैं, तब भय की जगह शांति और समझदारी आती है।

जब रास्ते कांटों से भरे हों: सही चुनाव की कला
साधक, जीवन के अनेक क्षणों में हम ऐसे मोड़ पर खड़े होते हैं जहाँ निर्णय लेना कठिन हो जाता है। हर विकल्प अपने आप में सही और गलत दोनों लगते हैं, और मन उलझन में डूब जाता है। यह भाव तुम्हारे भीतर है, और जान लो कि तुम अकेले नहीं हो। यह उलझन तुम्हें और भी मजबूत बनाएगी, बस सही दृष्टि चाहिए।

मृत्यु से न घबराओ — यह जीवन का स्वाभाविक साथी है
साधक, जीवन में मृत्यु का भय एक गहरा और स्वाभाविक अनुभव है। यह भय हमें कभी-कभी इतना घेर लेता है कि हम जीना भूल जाते हैं। लेकिन याद रखो, मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक परिवर्तन है। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस भय को समझें और उसे पार करें।

भय से मुक्ति: चलो मिलकर अंधकार को परास्त करें
साधक, भय एक ऐसा साथी है जो अक्सर अनजाने में हमारे मन को घेर लेता है। यह तुम्हारे भीतर की शक्ति को छुपा देता है, पर याद रखो, भय भी एक अनुभूति मात्र है, जिसे समझकर और सही दृष्टिकोण से देखा जाए तो वह धीरे-धीरे कम हो सकता है। भगवद गीता में हमें भय को नियंत्रित करने और उससे ऊपर उठने का अमूल्य मार्ग दिखाया गया है।

अनजाने पथ पर कदम: जब राह हो असामान्य, तो विश्वास कैसे कायम रखें?
साधक,
जब जीवन में हम सामान्य से हटकर, भीड़ से अलग कोई राह चुनते हैं, तब मन में अनिश्चितता, संदेह और भय उत्पन्न होना स्वाभाविक है। यह पथ कठिन हो सकता है, पर याद रखो, असली विजय उसी की होती है जो अपने भीतर की आवाज़ पर भरोसा करता है। तुम अकेले नहीं हो, हर महान यात्रा की शुरुआत एक छोटे कदम से होती है, और उस कदम के पीछे विश्वास का दीपक जलता है।

डर को पार कर सच्चे मार्ग पर चलना — तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब हम अपने जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर कदम बढ़ाते हैं, तब डर और संशय हमारे मन के साथी बन जाते हैं। यह स्वाभाविक है। लेकिन याद रखो, हर महान यात्रा की शुरुआत एक छोटे से विश्वास से होती है। डर को समझो, उससे भागो नहीं। क्योंकि वही डर तुम्हें मजबूत बनाने वाला एक गुरु भी है।

डर को मात देकर सफलता की ओर पहला कदम
साधक, जब हम किसी नए कार्य को शुरू करने की सोचते हैं, तो असफलता का भय अक्सर हमारे मन को जकड़ लेता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि हम अपने सपनों को लेकर संवेदनशील होते हैं। पर याद रखो, हर महान सफलता की शुरुआत एक छोटे प्रयास से होती है, और असफलता केवल अनुभव का एक हिस्सा है, जो हमें मजबूत बनाता है। तुम अकेले नहीं हो, हर सफल व्यक्ति ने डर को पार किया है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ४७)

निर्भयता की ओर पहला कदम: जब भय छूटे, तब जीवन खिल उठे
साधक, तुम्हारे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि कैसे हम अपने भीतर के भय को दूर कर, निडर बन सकें। जीवन में भय अनेक रूपों में आता है — असफलता का डर, अपमान का भय, अज्ञात का संदेह। लेकिन याद रखो, निडरता कोई जन्मजात गुण नहीं, बल्कि अभ्यास और समझ का फल है। आइए, श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाश में इस रहस्य को समझें।