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भविष्य की अनिश्चितता में साहस के साथ कदम बढ़ाना
साधक, जब जीवन के रास्ते धुंधले और अनिश्चित लगें, तो यह स्वाभाविक है कि मन में चिंता और भय उठते हैं। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर महान योद्धा ने इसी अनिश्चितता का सामना किया है। आज हम भगवद गीता के अमृत शब्दों से उस साहस को जगाएंगे जो तुम्हारे भीतर छिपा है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

संकल्प और साहस के लिए गीता का संदेश

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47)

डर से दोस्ती: जब हम उसे अपना साथी बनाते हैं
साधक, डर हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह न तो पूरी तरह बुरा है और न ही हमेशा खतरनाक। डर हमें सचेत करता है, हमें सुरक्षित रखता है, लेकिन जब यह बढ़ जाए तो वह हमें जकड़ लेता है। आइए, गीता के प्रकाश में समझते हैं कि कैसे डर को अपनाएं बिना उसे अपने ऊपर हावी होने दें।

डर से शक्ति की ओर: तुम्हारे भीतर छुपा है अपार साहस
डर, वह भावना जो कभी-कभी हमें रोकती है, हमें कमजोर महसूस कराती है, पर जानो, यही डर तुम्हारे भीतर छुपी हुई शक्ति का द्वार भी है। यह समझना जरूरी है कि डर तुम्हारा दुश्मन नहीं, बल्कि तुम्हारा शिक्षक है। जब तुम डर को समझोगे, तब वह तुम्हें नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।

भय से मुक्त होकर सच्चाई से सामना करना — तुम्हारा साहस तुम्हारा साथी है
साधक, जीवन में जब भी हम सच के सामने खड़े होते हैं, तो भय हमारे मन में घुस आता है। यह भय हमें पीछे हटने, झुकने और कभी-कभी खुद को खो देने पर मजबूर करता है। लेकिन जान लो, भय मन का एक भ्रम है, जो हमें हमारी शक्ति से दूर ले जाता है। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने हमें यही सिखाया है कि भय से ऊपर उठकर, निर्भय होकर ही हम जीवन की वास्तविकता का सामना कर सकते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:

निडरता की ओर पहला कदम: अर्जुन की तरह साहस जगाना
साधक,
तुम्हारे मन में जो सवाल उठ रहा है — "अर्जुन की तरह निडर कैसे बनें?" — यह वास्तव में एक महान प्रश्न है। निडरता केवल भय का अभाव नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य, धर्म और सत्य के प्रति दृढ़ निश्चय है। अर्जुन ने भी शुरुआत में भय, संशय और उलझनों का सामना किया था, फिर भी उन्होंने अपने भीतर से उस निडरता को जगाया। आइए, हम गीता के प्रकाश में इस राह को समझें और अपने मन के संदेहों को दूर करें।

डर को गले लगाओ, क्योंकि तुम अकेले नहीं हो
प्रिय मित्र, जीवन के सफर में डर एक स्वाभाविक साथी है। तुम्हारे सामने जो भी परिस्थितियाँ आती हैं, वे तुम्हारे साहस को परखने के लिए होती हैं, न कि तुम्हें रोकने के लिए। डर को भागने का कारण न समझो, बल्कि उसे समझो और उससे सीखो। चलो, भगवद गीता के प्रकाश में इस भय को कैसे दूर करें, इसे समझते हैं।