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मन की इच्छाओं पर विजय: चलो साथ मिलकर सम्हालें ये तूफान
साधक, मन की इच्छाएँ कभी-कभी ऐसी होती हैं जैसे अनियंत्रित समुद्र की लहरें—वे हमें बहा ले जाती हैं, हमें अस्थिर करती हैं। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मानव के मन में ये इच्छाएँ होती हैं, और भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इस मन को वश में करने का मार्ग बताया है। चलो, इस दिव्य ज्ञान की ओर कदम बढ़ाते हैं।

भावनाओं की लहरों में संतुलन की राह
साधक, जब मन के भीतर भावनाओं का तूफ़ान उठता है, तब लगता है जैसे हम खुद को खो देते हैं। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर एक मनुष्य के भीतर ये आवेग आते हैं, और उनका सामना करना ही जीवन की कला है। आज हम भगवद गीता की अमृत वाणी से सीखेंगे कि कैसे भावनात्मक आवेगों को शांत कर बुद्धिमानी से सोचें।

दिल से दिल तक: जब रिश्तों में स्वामित्व की भावना घेर ले
साधक, रिश्तों की दुनिया में स्वामित्व की भावना अक्सर हमारे मन को जकड़ लेती है। हम चाहते हैं कि हमारे प्रिय केवल हमारे हों, हमारी इच्छाओं के अनुसार चलें, और कभी-कभी यह जकड़न प्रेम की जगह तनाव बना देती है। परंतु गीता हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम स्वामित्व से परे होता है। आइए इस गूढ़ विषय को समझते हैं।

क्रोध की आग बुझाने का पहला कदम: इंद्रियों पर नियंत्रण
साधक,
तुम्हारे मन में उठती क्रोध की लहरें और इंद्रियों की अनियंत्रित प्रवृत्ति को देख मैं समझता हूँ कि यह तुम्हारे लिए कितना चुनौतीपूर्ण है। यह संघर्ष हर मानव के जीवन में आता है, और इसे समझना ही आध्यात्मिक विकास की दिशा में पहला कदम है। तुम अकेले नहीं हो, और यह भी संभव है कि तुम इस आग को शांत कर सको।

भावनाओं के तूफान में शांति का दीप जलाएं
साधक, जब अंदर की आग भड़कती है, क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या की लहरें मन को घेर लेती हैं, तब ऐसा लगता है जैसे संसार ही हमारे खिलाफ हो। पर जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के भीतर ये भाव आते-जाते रहते हैं। पर असली वीर वही है जो इन भावों को समझकर, उन्हें नियंत्रित कर अपने भीतर की शांति को बनाए रखता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63
ध्यान दें: यहाँ कृष्ण ने मन की अशांति को समझाया है।

डर के सागर में एक प्रकाश की किरण
साधक, जब तुम्हारे मन में नियंत्रण खोने का डर उठता है, तो समझो कि यह मानव होने का स्वाभाविक हिस्सा है। तुम अकेले नहीं हो, हर कोई कभी न कभी इस भय से जूझता है। यह डर तुम्हारे अस्तित्व की गहराई से जुड़ा है, लेकिन इसे पहचान कर, समझ कर तुम उससे ऊपर उठ सकते हो। आइए, भगवद गीता की दिव्य वाणी से इस उलझन का समाधान खोजते हैं।

चलो यहाँ से शुरू करें: नियंत्रण की जंजीरों से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, यह प्रश्न जीवन की गहरी समझ की ओर पहला कदम है। हम सभी कभी न कभी उन परिस्थितियों का सामना करते हैं जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते। यह स्वीकार करना कठिन होता है, क्योंकि मन चाहता है कि सब कुछ हमारी इच्छा के अनुसार चले। लेकिन यही स्वीकृति हमें आंतरिक शांति की ओर ले जाती है। आइए, गीता के अमृत शब्दों से इस उलझन का समाधान खोजें।

चिंता के बादल में भी तुम्हारा साथ है
प्रिय शिष्य, जब जीवन की घटनाएँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तो मन में बेचैनी और चिंता उठना स्वाभाविक है। यह अनुभूति तुम्हें अकेला महसूस करा सकती है, पर याद रखो, यह भी एक गुजरता हुआ मौसम है। भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने हमें ऐसे समय में भी स्थिरचित्त रहने का मार्ग दिखाया है। चलो, मिलकर इस चिंता के जाल से बाहर निकलने की राह खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

(अध्याय 2, श्लोक 48)