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Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

नियंत्रण की जंजीरों से मुक्त होने का मार्ग
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में जो नियंत्रण की इच्छा है — चाहे वह लोगों पर हो या परिणामों पर — वह एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है। परंतु यही इच्छा तुम्हारे भीतर अशांति और चिंता का कारण बनती है। आइए, हम भगवद गीता की अमृत वाणी से इस जंजीर को खोलने का मार्ग खोजें।

मन की जंग में कृष्ण का स्नेहिल आशीर्वाद
प्रिय शिष्य, जब मन की बेचैनी और इच्छाओं की उलझन हमें घेर लेती है, तब लगता है जैसे हम खुद से दूर हो रहे हैं। पर जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के भीतर यह लड़ाई चलती है — मन को जीतना, उसे अपने वश में करना। श्रीकृष्ण ने गीता में इस विषय पर जो अमूल्य ज्ञान दिया है, वह आज भी हमारे लिए दीपस्तंभ बन सकता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 5

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

इच्छाओं के महासागर में संतुलन की ओर एक कदम
साधक, आधुनिक जीवन की तेज़ रफ्तार और भौतिक सुख-सुविधाओं की बहार में हम अक्सर अपनी इच्छाओं के जाल में फंस जाते हैं। यह स्वाभाविक है कि मन नई-नई चीज़ों की लालसा करता है, परंतु जब ये इच्छाएँ असंतोष का कारण बनें, तब हमें उनके नियंत्रण का मार्ग समझना आवश्यक हो जाता है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

चिंता के बादल के बीच भी शांति का सूरज
प्रिय शिष्य, जब मन चिंता के जाल में फंसता है, तब ऐसा लगता है जैसे हर दिशा में अंधेरा घिर आया हो। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मानव के जीवन में चिंता आती है, पर भगवद गीता हमें सिखाती है कि कैसे उस चिंता के बादलों के बीच भी मन को स्थिर और शांत रखा जा सकता है। चलो, इस अनमोल ज्ञान के साथ हम चिंता को समझें और उससे पार पाएं।

क्रोध की आग में शीतलता की छाँव — मन के क्रोध को कैसे करें नियंत्रित
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में क्रोध की लहरें उठ रही हैं, और यह स्वाभाविक है। मनुष्य होने का अर्थ है भावनाओं का अनुभव करना। परंतु जब क्रोध हमारे विचारों और कर्मों को प्रभावित करता है, तब वह हमारे भीतर अशांति और दुःख का कारण बनता है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने हमें इस क्रोध के तूफान को शांत करने का अमूल्य मार्ग दिखाया है।

मन की धुंध से निकलकर शांति की ओर कदम
साधक, जब मन उलझनों के जाल में फंसा हो, तब उसे समझना और उससे बाहर निकलना सबसे बड़ी चुनौती होती है। यह स्वाभाविक है कि जीवन में कई बार विचारों की भीड़ हमें भ्रमित कर देती है। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मानव के मन में कभी न कभी यह संघर्ष होता है। चलो, हम भगवद गीता की अमृत वाणी से उस अंधकार में प्रकाश की ओर बढ़ने का मार्ग खोजते हैं।

प्रलोभनों के बीच भी आत्मशक्ति की ज्योति जलाए रखना
साधक, यह समझना बहुत जरूरी है कि जीवन में प्रलोभन अनिवार्य रूप से आते हैं। वे हमारे मन को विचलित करते हैं, हमें अपने लक्ष्य से भटका सकते हैं। लेकिन चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता ने सदियों से हमें सिखाया है कि कैसे हम इन प्रलोभनों के बीच भी अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत रख सकते हैं।

संघर्ष की आंधी में शांति का दीप जलाना
साधक, जब मन तर्क-वितर्क और संघर्ष की उठापटक से व्याकुल होता है, तब शांति की खोज सबसे कठिन लगती है। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर मानव की यात्रा में ऐसे क्षण आते हैं जब भीतर का तूफान शांत होने का नाम नहीं लेता। यही समय है जब भगवद गीता की अमृत वाणी तुम्हारे लिए एक प्रकाशस्तंभ बन सकती है।

मन की उलझनों में ध्यान: शांति की ओर पहला कदम
साधक, जब मन की लहरें उफान पर हों और विचारों का सागर तूफानी हो, तब ध्यान वह प्रकाशस्तंभ है जो तुम्हें स्थिरता और शांति की ओर ले जाता है। मन को नियंत्रित करना आसान नहीं, पर ध्यान की शक्ति से यह संभव हो जाता है। तुम अकेले नहीं हो, हर मन इसी संघर्ष से गुज़रता है। चलो, गीता के अमृतमय शब्दों के साथ इस रहस्य की खोज करें।

मौन की शक्ति: जब शब्द थम जाते हैं, तब मन जागता है
साधक,
तुम्हारा मन उस रहस्य की खोज में है जहाँ शब्दों की आवाज़ कम हो जाती है, और भीतर की गहराई से एक अनोखी शक्ति उभरती है। मानसिक अनुशासन की राह पर मौन एक ऐसा साथी है, जो तुम्हें अपने भीतर की सच्चाई से जोड़ता है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो इस खोज में। आइए, गीता के अमृत शब्दों से इस मौन की शक्ति को समझें।