अहंकार के बंधन से मुक्त: पद और पहचान से परे चलना
साधक,
तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है। जब हम नौकरी, पद और शीर्षक को अपनी पहचान मान लेते हैं, तो हमारा अहंकार उस पहचान के साथ जुड़ जाता है। यह अहंकार कभी-कभी हमारे भीतर असंतोष, तनाव और भय का कारण बनता है। लेकिन याद रखो, तुम पद या शीर्षक नहीं हो, तुम उससे कहीं अधिक हो। चलो इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
मज्जस्व गतोऽस्मि मध्ये धर्म्ये चिरं तिष्ठ मे।
यथाकाशसदृशं व्याप्तं सर्वत्रमिदं जगत्॥
(भगवद गीता 11.38)