detachment

Mind Emotions & Self Mastery

How can I control my negative thoughts as per the Gita?


Discover Gita's timeless wisdom for inner peace and emotional balance. Find clarity amidst life's chaos.

Life Purpose, Work & Wisdom

What does the Bhagavad Gita say about finding my true calling?


Uncover ancient principles for meaningful work and a life driven by purpose. Navigate your path with spiritual insight.

Relationships & Connection

How can I improve my relationships with others using Gita's teachings?

Build harmonious connections rooted in spiritual understanding. Transform your interactions with love and compassion

Devotion & Spritual Practice

What is the best way to start a daily spiritual practice according to the Gita?

Deepen your connection with the Divine through authentic practices. Cultivate a heart filled with devotion and inner joy.

Karma Cycles & Life Challenges

How can I understand and overcome life's challenges through the law of Karma?

Navigate life's ups and downs with a deeper understanding of Karma. Find strength and resilience in every experience.

कर्म के फल से मुक्त होकर उड़ान भरना
साधक, जीवन में जब हम कर्म करते हैं, तो अक्सर हमारा मन फल की चिंता और आसक्ति में उलझ जाता है। तुम्हारा यह प्रश्न — "परिणामों से जुड़ाव के बिना क्रिया करना" — जीवन की सबसे गूढ़ सीखों में से एक है। यह समझना ज़रूरी है कि कर्म करना हमारा धर्म है, पर फल पर आसक्ति हमें बंधन में डालती है। आइए, इस रहस्य को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।

अलगाव का अभ्यास: दिल से जुड़ा, पर बंधन से मुक्त
साधक, यह समझना स्वाभाविक है कि जब हम अलगाव की बात करते हैं, तो मन में एक तरह की ठंडक या भावहीनता का डर उठता है। परंतु गीता हमें सिखाती है कि सच्चा अलगाव बंधनों को तोड़ना है, न कि अपने दिल को ठंडा या सूना करना। आइए, इस गहन विषय पर श्रीकृष्ण के अमृत वचन से मार्गदर्शन पाते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||

— भगवद्गीता 2.48

शरीर से वैराग्य: जीवन का सच्चा बंधन समझना
साधक, जब हम मृत्यु, क्षति और जीवन के अंतर्मुखी पहलुओं का सामना करते हैं, तब शरीर के प्रति हमारी आसक्ति और उससे अलगाव का प्रश्न गहराई से उठता है। यह वैराग्य, यानी शरीर से मोह त्यागना, केवल एक भाव नहीं, बल्कि जीवन की गहरी समझ और शांति की ओर पहला कदम है। चलिए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को सुलझाते हैं।

दिल के रिश्तों में अलगाव — तुम अकेले नहीं हो
जब हम अपने आसपास के लोगों से जुड़ते हैं, तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि हमारे और उनके बीच एक अदृश्य दीवार बन गई है। भावहीनता और अलगाव का यह अनुभव बहुत भारी होता है, खासकर जब हम अपने प्रियजनों से दूरी महसूस करते हैं। यह मन की एक गहरी पीड़ा है, जो अक्सर हमें अकेला और असहाय कर देती है। लेकिन जान लो, यह अनुभव भी जीवन का एक हिस्सा है, और इसके साथ जीना भी एक कला है, जिसे भगवद गीता की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं।

मृत्यु के क्षण में भी शांति का दीप जलाना
साधक, मृत्यु का विषय हमारे मन में गहरी चिंता, भय और अनिश्चितता लेकर आता है। यह जीवन का सबसे अनिवार्य सत्य है, परंतु इसे समझना और स्वीकार करना सरल नहीं। भगवद गीता हमें बताती है कि मृत्यु के समय भी वैराग्य, यानी असक्तता और आत्म-नियंत्रण क्यों आवश्यक है। यह केवल एक दार्शनिक विचार नहीं, बल्कि जीवन के अंतिम क्षणों में भी शांति और मुक्ति का मार्ग है।

तुम अकेले नहीं हो: अपनी असली कीमत जानो
साधक, जब हम अपनी कीमत की बात करते हैं, तो अक्सर बाहरी उपलब्धियाँ, पद, सम्मान, और समाज की मान्यताएँ हमारे मन में छा जाती हैं। लेकिन क्या सचमुच हमारी क़ीमत वही है? क्या हम केवल अपनी सफलताओं से ही मूल्यवान हैं? आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

🌟 "तुम वह नहीं जो दिखता है" — अस्थायी पहचान से परे का सफर
साधक,
तुम्हारा यह सवाल जीवन के सबसे गहरे रहस्यों में से एक की ओर संकेत करता है। नौकरी, पद, नाम — ये सब तो केवल बाहरी आवरण हैं, अस्थायी भूमिकाएं हैं जो समय के साथ बदलती रहती हैं। पर क्या वह सच्चाई है जो तुम्हारा अस्तित्व परिभाषित करती है? नहीं। तुम उससे कहीं अधिक हो। चलो, भगवद गीता के अमृत श्लोकों से इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं।

सफलता के पीछे भागते हुए: कृष्ण का स्नेहिल संदेश
साधक, जब हम सफलता की दौड़ में लगे होते हैं, तो मन अक्सर बेचैन और उलझन में रहता है। यह ठीक है कि हम आगे बढ़ना चाहते हैं, परंतु क्या कभी आपने सोचा है कि सफलता का असली अर्थ क्या है? भगवान श्रीकृष्ण की गीता में इस विषय पर जो अमूल्य ज्ञान है, वह आपके मन की उलझनों को सुलझा सकता है।

सफलता की राह में अलगाव का सार: व्यवसाय में लगाव और संतुलन
साधक, जब हम अपने सपनों को साकार करने के लिए व्यवसाय या स्टार्टअप की राह पर कदम बढ़ाते हैं, तो मन में अनेक भावनाएँ उठती हैं — उत्साह, चिंता, उम्मीद, और कभी-कभी भय भी। यह स्वाभाविक है कि हम अपने कार्य से जुड़ाव महसूस करें, परंतु यदि यह जुड़ाव अत्यधिक हो जाए तो वह हमें मानसिक अशांति और असफलता की ओर ले जा सकता है। आइए, भगवद्गीता के अमृत शब्दों से समझते हैं कि कैसे हम इस “अलगाव” की कला सीख सकते हैं।

🌿 जब दुनिया देखे नहीं, तब भी आत्मा क्यों न देखे?
प्रिय शिष्य, जब तुम्हारे प्रयासों की अनदेखी होती है, तब मन में निराशा और बेचैनी स्वाभाविक है। यह अनुभूति तुम्हारे भीतर की गहराई को छूती है, जैसे कोई फूल बिना बारिश के खिलने को तरसता है। पर याद रखो, तुम्हारा मूल्य किसी की नजरों से नहीं, तुम्हारे कर्मों से तय होता है। यह समय है अपने भीतर की शांति को जगाने का, क्योंकि सच्चा सम्मान वही है जो आत्मा को मिलता है।